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भारतीय संविधान मे राष्ट्रीय चेतना का समावेश

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भारतीय संविधान में समाहित राष्ट्रीय चेतना क्या हैवर्तमान समय इसको प्रतिपादित करने का है। अनादिकाल से चली आ रही भारतीय संस्कृति आज भी जीवंत है और अनेक कुठाराघातों को झेलकर भी फल-फूलकर आने वाली पीदियों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई है। जीवन के मूल्यों और सिद्धांतों को, जिनें हमारे महापुरुषों, संतों व ऋषियों ने पोषित किया और हिंदू धर्म-संस्कृति से उद्घोषित किया, वह आज भी पल्लवित अवस्था में विद्यमान है। भारतीय संविधान में भारत की प्राचीन संस्कृति और सांस्कृतिक मूल्यों का समावेश मिलता है। संविधान निर्माताओं ने इसी भाव से भारतीय संविधान में राष्ट्रीय चिंतन की दिशा का स्पष्ट संकेत दिया है।

सर्वप्रथम संविधान के मुखपृष्ठ पर हमारे राष्ट्रीय चिह अशोक स्तंभ का चित्र है। सम्राट अशोक भगवान राम के बाद एक आदर्श राजा हुए हैं। इसके साथ एक चित्र कमल का दिया गया है। कमल इस बात का प्रतीक है कि निर्मल हदब रहो। साथ ही नंदी का चित्र है, जो गोवंश का प्रतीक है। यह संकेत करता है कि भारत की प्राचीन संस्कृति में हमने अपनी धरती को माँ के रूप में देखा है।

यह प्रदर्शित करता है कि गाय राष्ट्रीय पश है और हमें पशुओं के प्रति सद्भावना रखनी चाहिए। संविधान के नीतिनिर्देशक सिद्धांतों के अंतर्गत केंद्र एवं राज्यों को निर्देश दिए गए हैं कि वे गाय और गोवंश के वध पर रोक लगाएँ और गोवंश की रक्षा के लिए उत्तम प्रयास करें। वैदिक युग में ऋषिकुल-प्राषियों के निवास स्थान के चित्र के रूप में दरसाए गए हैं। ये चित्र भारत के वैदिक साहित्य, वेद, पुराण, उपनिषद् और इतिहास की ओर संकेत करते हैं।

एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण चित्र है-मर्यादापुरुषोत्तम भगवान राम, लक्ष्मण एवं सीता जी का, जो लंका विजय के पश्चात पुष्पक विमान पर विराजमान हैं। यह दृश्य लंका विजय के उपरांत भगवान राम द्वारा सीता को वापस लाने के प्रसंग से लिया गया है। संविधान के चौथे अध्याय में महाभारत से चित्र लिया गया है। जिसमें भगवान कृष्ण हतोत्साहित अर्जुन को गीता का उपदेश देते हुए कर्मयोग का पाठ पढ़ा रहे हैं। गीता में उपदेश देना एक ऐतिहासिक घटना यी जिसे संविधान सभा ने स्वीकार किया है। अध्याय पाँच में भगवान गौतम बुद्ध का चित्र है।

भगवान महावीर भारत के मान्य महापुरुष थे और उनके द्वारा प्रवर्तित मत भारतीय संस्कृति एवं जीवनमूल्यों: के विकसित रूप थे और भारतीय संस्कृति के अंग के रूप में उन्हें संविधान सभा द्वारा स्वीकार किया गया। उनकी जड़ें भारत की भूमि में गहरी हैं। सम्राट अशोक: द्वारा किए गए बौद्ध धर्म के प्रचार एवं प्रसार का दृश्य भी: इसमें है। स्वर्णमुद्रिका को हाथ में लिए हुए सीता की. खोज में उड़ते हुए अंजनिपुत्र हनुमान का चित्र भी इसमें: है, जो भारत के हर नागरिक को यह संदेश देता है कि: वह राष्ट्रहित को रामहित समझकर अपने कर्त्तव्य में निरत रहे।

उपरोक्त चित्र इस बात का सबूत है कि भारत की संविधान सभा ने भगवान राम, भगवान हनुमान, भगवान कृष्ण, भगवान शिव, भगवान बुद्ध एवं भगवान महावीर स्वामी को भारत के ऐतिहासिक एवं राष्ट्रीय महापुरुषों के रूप में स्वीकार किया है। अत: भारतवर्ष के उपरोक्त राष्ट्रीय महापुरुषों के विरुद्ध कुछ कहना राष्ट्रद्रोह है। महाराजा विक्रमादित्य का चित्र भी उसमें है, उनके नाम से भला कौन परिचित नहीं है? भारत में विक्रम संवत् उन्हीं के नाम से चलता है।

विक्रमादित्य ने भारत की संस्कृति एवं इतिहास में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। उन्होंने विदेशी आक्रमणकारियों को भारत से बाहर खदेड़कर इतना महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया कि उनके नाम से विक्रम संवत्सर प्रारंभ हुआ और अपने मौलिक संविधान में उनको एक विशेष स्थान दिया गया व उनके दरबार का चित्र दिया गया, जिस पर भारत के मनीषियों के हस्ताक्षर हैं।

भारत के प्राचीन विश्वविद्यालयों में तक्षशिला एवं नालंदा अत्यधिक प्रसिद्धधे: जिनमें से नालंदा विश्वविद्यालय का चित्र संविधान में है। उड़ीसा की स्थापत्य कला का एक दृश्य भी उसमें चित्रित है। संविधान के अध्याय 12 के प्रथम पृष्ठ पर अंकित चित्र में भगवान शंकर नटराज के रूप में चित्रित है। भगवान शिव समस्त भारतवर्ष में पूर्व से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण तक सर्वव्यापी रूप में प्रतिष्ठित हैं।

भगीरथ के गंगा-अवतरण प्रयास के चित्र में तपस्या के – फलस्वरूप गंगा जी धरती पर तीनों रूपों में आई तथा भगवान शिव ने उन्हें अपनी जटाओं में धारण किया। :गंगा जी के ये तीन रूप है-सिंधु, गंगा, भागीरथी।

अध्याय 14 में हमें अकबर के दरबार का भी चित्र – मिलता है। अकबर अपने आचरण में अन्य यवन राजाओं से :भिन्न था। तलवार के जोर पर शासन करने के बजाय जनमानस को अपनी ओर खींचने का उसने प्रयास किया। – अकबर ने जिया नामक कुत्सित कृत्य पर रोक लगाई और -उसे हटाया। जजिया का प्रयोग अकबर के पूर्व मुगल शासकों एवं उसके पश्चात औरंगजेब ने धर्मातरण के लिए किया, – किंतु अकबर ने जजिया नामक इस कुत्सित कर को समाप्त – कर दिया था। दीन-ए-इलाही चलाने के अतिरिक्त अकबर अनेक भारतीय त्योहारों एवं उत्सवों को भी मनाता था। – छत्रपति शिवाजी महाराज एवं सिख पंथ के दसवें – गुरु एवं खालसा पंथ के संस्थापक गुरु गोविंद सिंह जी का

स्थापना कर पंच ककार (केश, कच्छ, कड़ा, कंघा, कृपाण) के माध्यम से भारतीय संस्कृति की रक्षा की थी। इन दोनों महापुरुषों का समय औरंगजेब के शासनकाल में था।

भारतीय संविधान में दो चित्र-टीपू सुल्तान और भारत की नारी शक्ति का प्रतीक वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई के भी हैं और ये दोनों शक्तियाँ ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ खड़ी हुई थीं। अध्याय 17 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का चित्र है, जो डांडी यात्रा का है और अध्याय 18 पर महात्मा गांधी का नोवाखाली दंगाग्रस्त क्षेत्रों में शांति स्थापना के लिए भ्रमण करते हुए चित्र है। भारत की स्वतंत्रता हेतु क्रांतिकारी आंदोलन से संबंधित अग्रणी स्वतंत्रता सेनानी-नेताजी सुभाषचंद्र बोस व अन्यों के चित्र भी हैं, जिनमें तिरंगे झंडे को नमन करते हुए नेताजी को दिखाया गया है।

सभी चित्र संविधाननिर्माताओं की राष्ट्रभक्ति और उदार चरित्र का प्रदर्शन करते हैं, जिसमें स्वतंत्रता संग्राम की दो धाराओं के प्रति सम्मान का भाव प्रदर्शित होता है तथा देश के लिए दिए गए बलिदानों का चित्रण होता है। भारत के सुदूर उत्तरी भूस्थल पर हिमालय के उतुंग शिखर है। जहाँ हमारे अगणित तीर्थ कैलास मानसरोवर, अमरनाथ आदि स्थित हैं।

हिमालय का चित्र इस भूस्थल को उत्तरी सीमा को भी प्रदर्शित करता है जो हिंदुकुश पर्वत से लेकर अरुणाचल की पूर्वी सीमा तक फैला हुआ है। भारत के मूल संविधान में अंकित चित्र राष्ट्रीय तत्त्वज्ञान से प्रेरित है। इस तरह संविधान में अंकित वे चित्र आज भी राष्ट्रीय चेतना का जागरण कर रहे हैं।


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जनवरी, 2021 : अखण्ड ज्योति

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