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श्वास-प्रश्वास की वैज्ञानिकता

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श्वासों पर ही हमारा जीवन आधारित है। श्वासों के द्वारा जीवन में प्राणों का संचार बना रहता है। गहरा श्वास हमें सकिय, सतेज एवं उत्साहित बनाए रखता है। जब हम गहरा श्वास लेते है तो उससे हमारा मन शांत रहता है। क्योंकि वे न्यूरोन सक्रिय नहीं होते, जो मस्तिष्क के उरोजना केंद्र से संपर्क करते हैं। गहरा श्वास लेने के लिए अलग न्यूरोन होते हैं या वे न्यूरोन मस्तिष्क के उन हिस्सों से जुड़ते हैं, जो शरीर को शांत व शीतल बनाए रखते हैं। चिंता व तनाव को दूर करने के लिए कहा जाता है कि लंबा और धौमा व गहरा श्वास लेना चाहिए। इस तरह की हिदायत मन को शांति देने के लिए दी जाती है। इसी प्रकार ध्यान की जो पुरानी परंपरा है, उसमें भी शांति के लिए नियंत्रित श्वास का प्रयोग किया जाता है।

अब पहली बार वैज्ञानिकों ने इस बात पर शोध द्वारा मुहर लगाई है कि गहरा श्वास तन व मन को शांत करता है। श्वास लेना शरीर की सबसे आवश्यक व लचीली प्रक्रिया है। हम अपने दिल की धड़कनों को अपनी मरजी से बदल नहीं सकते, लेकिन जिस तरह से हम श्वास लेते हैं, उसे बदला जा सकता है। यह हम जान-बूझकर भी कर सकते हैं, जैसे श्वास को थोड़ी देर के लिए रोक लेना, आहें भरना या जंभाई ले लेना। कोशिकाओं के स्तर पर मन व शरीर किस प्रकार श्वास का नियमन करते हैं या फिर श्वास किस तरह मन व शरीर को प्रभावित करता है-यह अब तक एक रहस्य ही बना हुआ है।

लगभग 25 वर्ष पहले लॉस एंजिल्स में कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इनसानों सहित जानवरों के ब्रेन स्टेम में 3000 न्यूरोन का छोटा-सा समूह खोजा था।जो आपस में जुड़ा हुआ होता है और ऐसा प्रतीत होता है कि श्वास के अधिकतर पहलुओं को वह ही नियंत्रित करता है। उन शोधकर्ताओं ने इस न्यूरोन को श्वास पेसमेकर का नाम दिया। इसके बाद के वर्षों में यह जानने के लिए कि यह कोशिकाएँ किस तरह काम करती हैं, कोई खास काम नहीं हुआ है लेकिन हाल ही में स्टेनफोर्ड, कैलिफोर्निया व अन्य विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों ने आधुनिक तकनीकों का प्रयोग : करना शुरू किया, ताकि इससे संबंधित न्यूरोनों का अध्ययन किया जा सके।

वैज्ञानिकों ने आखिरकार 65 अलग प्रकार के न्यूरोनों। की पहचान इसमें की है, जिनमें से प्रत्येक के पास श्वास के किसी खास पहल का नियमन करने की विशिष्ट जिम्मेदारी है। वैज्ञानिकों ने इस विचार की पुष्टि एक उल्लेखनीय अध्ययन में की, जो पिछले साल’नेचर’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ था। इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने चूहों को एक प्रकार: की पेसमेकर कोशिका पर विकसित होने दिया। जब वैज्ञानिकों ने चूहों में एक वायरस इंजेक्ट किया, जो केवल उन्हीं। कोशिकाओं को मारता है तो चूहों ने गहरा श्वास लेना बंद कर दिया। इनसानों की तरह चूहे भी आमतौर से कुछ मिनटों। के बाद गहरा श्वास लेते है। इन कोशिकाओं से आदेशन मिलने पर गहरा श्वास लेना बंद हो गया।

इसमें दो राय नहीं हैं कि यह अध्ययन मील का। पत्थर था, लेकिन इससे पेसमेकर व अन्य न्यूरोनों की क्षमताओं: पर नए सवाल खड़े हो गए। इसलिए अभी हाल ही में हुए अध्ययन में जो ‘साईस’ पत्रिका में प्रकाशित हुआ हैशोधकर्ताओं ने ध्यानपूर्वक चूहों में श्वास संबंधी एक अन्य प्रकार के न्यूरोन को विकल किया। इससे पहले तो चूहों में कोई परिवर्तन नजर नहीं आया। वह पहले की तरह ही गहरा श्वास ले रहे थे, लेकिन जब उन्हें एक अलग वातावरण में रखा गया, जहाँ ऐसी घुटन थी कि तेज-तेज श्वास लेने की जरूरत थी तो वे चूहे एकदम शांत बैठे रहे।

ऐसा क्यों हुआ, इसे बेहतर तरीके से जानने के लिए शोधकर्ताओं ने चूहों के न्यूरोन को देखा कि विकल न्यूरोन किस तरह से मस्तिष्क के अन्य हिस्सों से जुड़ा हो सकता है। मालूम यह हुआ कि उस खास न्यूरोन का सीधा संबंध मस्तिष्क के उस हिस्से से था, जो उत्तेजना उत्पन किया करता है। यह क्षेत्र मस्तिष्क के अन्य हिस्सों को संकेत देता है कि हम जाग जाएँ, सतर्क हो जाएँ और कभी-कभी अधिक व्याकुल या चिंतित हो जाएँ।

जिन चूहों के न्यूरोन को विकल किया गया था, उनमें मस्तिष्क का यह क्षेत्र शांत रहा। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जिन न्यूरोनों को विकल किया गया था, वे आमतौर से पेसमेकर के भीतर अन्य न्यूरोनों की गतिविधियों को पहचानते है और तेजी से श्वास लेने व गंध को जो प्रक्रिया को अंजाम देते हैं। इसके बाद विकल किए गए न्यूरोन मस्तिष्क को सतर्क करते हैं कि चूहे में कुछ चिंताजनक घट रहा है। वह जोर-जोर से श्वास ले रहा है और मस्तिष्क को चाहिए कि वह चिंता के तंत्र को गतिशील कर दे। इस प्रकार तेज-तेज कुछ श्वास लेने के बाद चिंता की स्थिति आ जाती है और तेज फीडबैक लूप के कारण चूहा ज्यादा तेज सूंघने या श्वास लेने लगता है और अधिक चिंतित हो जाता है

चूकि न्यूरोनों को विकल करने से यह तंत्र शुरू ही नहीं हुआ, इसलिए चूहे शांत बैठे रहे। नतीजा यह है कि जब हम गहरा श्वास लेते हैं तो उससे हमारा मन शांत रहता -है; क्योंकि वह न्यूरोन सक्रिय नहीं होते, जो मस्तिष्क के उत्तेजना केंद्र से संपर्क करते हैं। विज्ञान की पहुँच भले ही यहाँ तक नहीं हो, लेकिन इस प्रयोग से यह तो पता चलता ही है कि प्राणायाम से मस्तिक शांत एवं शीतल हो सकता है, लेकिन वैज्ञानिक पेसमेकर के भीतर सभी प्रकार के न्यूरोनों और उनकी गतिविधियों का अध्ययन जारी रखने की योजना बनाए हुए हैं।

अब तक जो अध्ययन हुए हैं, उनमें सिर्फ चूहों पर : प्रयोग किया गया है, इनसानों पर नहीं, लेकिन इनमानों के श्वास पेसमेकर भी चूहों से काफी मिलते-जुलते हैं। भले ही यह बात शुरुआती है, लेकिन इस शोध से प्राचीन धारणा के सत्य होने को बल मिलता है। डॉ. क्रासनाउ का कहना है कि माताएँ हमेशा से ही सही थी। जब वे हमें परेशान व गुस्से में देखकर हमसे कहा करती थीं-“रुको और गहरी श्वास लो और ऐसा करते ही हम शांत हो जाया करते थे।” अतः हमें गहरा श्वास लेने का अभ्यास करना चाहिए और . अपने अनुकूल प्राणायाम का भी अभ्यास करना चाहिए। प्राणायाम के अनगिनत लाभ हैं और ये वैज्ञानिक शोधे यह प्रमाणित करती हैं कि नियमित प्राणायाम करने से हम सदा स्वस्थ एवं प्रसन्न रह सकते हैं।


एक गधा पीठ पर अनाज की भारी बोरी लादे चल रहा था। देवर्षि नारद वहाँ से निकले तो उन्होंने गधे के निकट से गुजर रही एक चींटी को झुककर प्रणाम किया। गधे को यह देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने अपनी जिज्ञासा नारद मुनि के समक्ष रखी। देवर्षि बोले-“वत्स! यह चींटी बड़ी कर्मयोगी है, निष्ठापूर्वक अपना कार्य करती है। देखो, कितनी बड़ी चीनी की डली लिए जा रही है। इसीलिए मैंने इसकी निष्ठा को नमन किया।” गधा क्रोधित हुआ और बोला-“प्रभु! यह अन्याय है। इससे ज्यादा बोझ मैंने उठा रखा है तो मझे ज्यादा बड़ा कर्मयोगी कहलाना चाहिए।” देवर्षि हँसे और बोले-“पुत्र! कार्य को भार समझकर करने वाला कर्मयोगी नहीं कहलाता, बल्कि वो कहलाता है, जो उसे अपना दायित्व समझकर प्रसन्नतापूर्वक निभाता है।” गधे की समझ में कर्मयोग का मर्म आ गया था।

जनवरी, 2021 : अखण्ड ज्योति

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